जिला पंचायतः अपनों में आमसहमति, सपा के लिए टेढ़ी खीर!

गाजीपुर। निःसंदेह लगातार ढाई दशक से जिला पंचायत पर सपा का कब्जा रहा है लेकिन इस बार के चुनाव में जहां प्रमुख विरोधी पार्टियां संगठनात्मक ढंग से उसे जिला पंचायत से बेदखल करने पर आमादा हैं, वहीं सपा इस चैलेंज को लेकर खुद को चेंज करने के मूड में नहीं दिख रही। स्थिति यह है कि विरोधी दलों के साथ ही उसके उम्मीदवारों के लिए अपनों से ही जूझने की नौबत आती दिख रही है। किसी एक पर आम सहमति बनाने के लिए जिला नेतृत्व की अब तक की सारी कोशिश बेमतलब है।
जिला पंचायत की कुल 67 सीट है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट को छोड़ दिया जाए तो लगभग हर जगह सपा के दावेदार आपस में ही एक दूसरे को चुनौती देने की तैयारी में हैं। जाहिर है कि इनकी आपस के टकराव का फायदा विरोधी उठाने की ताक में हैं।
ऐसा नहीं कि पार्टी जिला नेतृत्व इससे बेखबर है। जिलाध्यक्ष रामधारी यादव हर निर्वाचन क्षेत्र में पहुंच कर किसी एक के नाम पर आमसहमति को लेकर बैठकें कर रहे हैं लेकिन कहीं कोई राह नहीं निकल रही है। उन बैठकों में कोई अपनी वरिष्ठता, कोई अपना आखिरी चुनाव, कोई अपनी पांच साल की लगातार मेहनत की दुहाई देकर चुनाव मैदान से हटने से साफ मना कर दे रहा है। बावजूद जिलाध्यक्ष रामधारी यादव अपने मकसद को लेकर नाउम्मीद नहीं हैं। इस मसले पर `आजकल समाचार` से बातचीत में कहे कि आखिर में आमसहमति जरूर बनेगी। दावेदारों पर पार्टी के परंपरागत वोटरों का भी दबाव बनने लगा है। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व का भी आमसहमति को लेकर स्पष्ट निर्देश है। इसीक्रम में जिलाध्यक्ष यह भी बताए कि शीघ्र ही पार्टी अपने अधिकृत उम्मीदवारों की सूची जारी करेगी।
उधर पार्टी के ही कुछ वरिष्ठजनों का कहना है कि जिला नेतृत्व को यह काम पहले ही करना चाहिए था। अब जबकि नामांकन शुरू होने में कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। तब आमसहमति बनाने की बात बेमानी ही कही जाएगी। हालांकि उन वरिष्ठजनों में कुछ ने यह भी कहा कि पार्टी के लिए यह कोई पहला अनुभव नहीं है। पिछले चुनावों में भी ऐसा ही धमगज्जड़ मचता रहा है लेकिन आखिर में जिला पंचायत पर सपा का ही कब्जा होता रहा है और यह सब पार्टी के परंपरागत वोटर, समर्थक, कार्यकर्ताओं के विवेकपूर्ण निर्णय से होता रहा है और इस बार भी ऐसा ही होगा।