अंसारी बंधुओं को लेकर सपा मुखिया की निजी खुन्नस खत्म!

गाजीपुर। अंसारी बंधुओं को लेकर सपा के राष्ट्रीय नेतृत्व का नजरिया लगभग पूरी तरह बदल चुका है। उसके करीब अंसारी बंधु कितने करीब पहुंचे हैं। यह तो नहीं मालूम लेकिन यह जरूर साफ हो गया है कि अब अंसारी बंधु सपाके लिए आंखों की किरकिरी नहीं रह गए हैं।
इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सपा 2022 के विधानसभा चुनाव में अपना खुद का उम्मीदवार उतारने की तैयारी में जुट गई है। इसके लिए विधानसभा की अन्य सीटों की तरह मुहम्मदाबाद सीट के दावेदारों से आवेदन प्राप्त कर चुकी है। हालांकि गाजीपुर अन्य सीटों की तुलना में मुहम्मदाबाद सीट के लिए सबसे कम मात्र तीन आवेदन पार्टी को मिले हैं।
मालूम हो कि 2017 के चुनाव में मुहम्मदाबाद सीट को लेकर पार्टी में खूब ड्रामेबाजी हुई थी। यहां तक की 2012 में पार्टी के टिकट पर दमदारी से चुनाव लड़े राजेश राय पप्पू की अनदेखी करते हुए नामांकन के बिल्कुल आखिरी दौर में हैदर अली टाइगर को टिकट दी थी और उसी नाटकीय अंदाज में उनका नामांकन भी हुआ था। नतीजा उनका नामांकन भी खारिज हो गया था और तब उसकी सहयोगी रही कांग्रेस के खाते में खुदबखुद मुहम्मदाबाद सीट चली गई थी। यही नहीं बल्कि उस चुनाव अभियान में सपाके मुखिया अखिलेश यादव गाजीपुर तो आए और अन्य सीटों के अपने उम्मीदवारों के लिए सभाएं कर वोट भी मांगे थे लेकिन मुहम्मदाबाद नहीं गए और न वहां के कांग्रेसी उम्मीदवार के लिए ही कुछ बोले। उनके उस बर्ताव का संदेश पार्टी के कॉडर में यही पहुंचा था कि मुहम्मदाबाद सीट पर बसपा उम्मीदवार सिबगतुल्लाह अंसारी को हराना है। जाहिर था सपाके कॉडर की निगेटिव वोटिंग का लाभ भाजपा को मिलना था और हुआ भी वही। अंसारी बंधुओं से उनकी परंपरागत सीट भाजपा छीन ली।
वैसे अंसारी बंधुओं के लिए सपाकी नरमी का एहसास 2019 के लोकसभा चुनाव में ही हो गया था। तब सपा और बसपा में गठबंधन था। अफजाल अंसारी बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे। भाजपा सहित अन्य गैर पार्टियों को यकीन था कि सपाके मुखिया अफजाल अंसारी के समर्थन में सभा करने गाजीपुर नहीं आएंगे लेकिन वह बसपा मुखिया मायावती के साथ न सिर्फ गाजीपुर आए बल्कि सभा में अफजाल के लिए वोट भी मांगे। उनके आने के साथ ही अफजाल अंसारी की जीत सुनिश्चित हो गई थी।
शायद यही वजह है कि अफजाल अंसारी अखिलेश यादव के उस ‘उपकार’ को आज भी नहीं भूले हैं। भले ही सपा और बसपा का गठबंधन टूट चुका है लेकिन सांसद की हैसियत से अफजाल अंसारी को जब भी मौका मिलता है तब अपनी पार्टी बसपा के अलावा सपा के लोगों को भी वह ‘उपकृत’ करना नहीं भूलते हैं।
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समाजवादियों के लिए अफजाल अंसारी के इस सॉफ्ट कॉर्नर से सियासी हलके में यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि अंसारी बंधु सपा में वापसी करने वाले हैं। इस चर्चा में कितना दम है यह तो नहीं मालूम लेकिन बसपा में आते वक्त अफजाल अंसारी की बात लगभग सभी को याद होगी कि वह तीनों भाई ताजीवन बसपा में ही रहेंगे।
ठीक है कि सियासत में दावे-वादे का कोई मतलब नहीं होता लेकिन जो दिखता है वह प्रमाणित रहता है और दिख यही रहा है कि अंसारी बंधुओं के लिए अब सपा के मुखिया अखिलेश यादव की वह निजी खुन्नस बीते दिनों की बात हो चुकी है और यह भी कि अंसारी बंधुओं में बसपा के लिए वफादारी में कोई खोट नहीं है।